राजस्थान का सांभर लेक जिसे लोग नमक की नगरी के रूप में जानते हैं, एक नये पर्यटन स्थल के रुप में चर्चित हो रहा है।यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों का अपना अलग ही आर्कषण है।पर्यटकों के लिए यहाँ पर कई किलोमीटर का साइकिल ट्रेक, एसयूवी और एटीवी आदि साधनों के द्वारा सफारी, ग्राम भ्रमण, गाइडेड स्टार गेंजिग,इंडोर और आउटडोर गेम्स शामिल हैं।
यहाँ पर पौराणिक मंदिर, मस्जिद दादूधाम, चर्च व गुरुद्वारा है,इस
गुरुद्वारे में सिखों के दसवें गुरु श्री गोविंद सिंह जी ने प्रवास किया था।
यहाँ पर स्थित नमक उत्पादन और सभी सुविधाओं से सुसज्जित शाही ट्रेन द्वारा पर्यटक झील तक यात्रा कर सकते हैं और स्वादिष्ट व्यंजनों का
स्वाद भी ले सकते हैं।पर्यटकों के ठहरने के लिए सांभर हैरिटेज है।
यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य आपका मन मोह लेगा साथ ही उत्तरी एशिया और साइबेरिया से आने वाले प्रवासी पक्षियों की उपस्थिति भी आपको मोहक लगेगी।
यहाँ का इतिहास भी काफी दिलचस्प है,महाभारत के अनुसार इस स्थान पर दैत्यराज वृषपर्वा के साम्राज्य का भाग था,दैत्यराज के कुलगुरु श्री शुक्राचार्य यहाँ पर निवास करते थे।यहीं पर कुलगुरु की पुत्री देवयानी और महाराज ययाति का विवाह हुआ था,देवयानी को समर्पित
एक पौराणिक मंदिर भी यहाँ पर है जो झील के पास ही है। यहीं पर
अकबर और रानी जोधा का भी विवाह हुआ था।
हिन्दू मान्यता के अनुसार चौहान राजपूत राजाओं की रक्षकदेवी
शाकम्भरी देवी ने यहां के वन को बहुमूल्य धातुओं के मैदान में बदल दिया,परन्तु इस संपदा के कारण होने वाले झगड़ों से चिन्तित लोगों ने देवी से अपना वरदान वापस लेने को कहा, तब देवी ने सारी संपदा को नमक में परिवर्तित कर दिया। शाकम्भरी देवी का मंदिर अभी भी यहाँ स्थित है।
यहीं पर ख्व़ाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के पोते ख्व़ाजा हिस्मुद्दीन की
दरगाह है,मान्यता है कि अगर दादा के साथ पोता भी जि़यारत करे तो
उनकी दुआ कुबूल होती है, जायरीन बड़ी संख्या में यहाँ पर आते हैं।