पाश्चात्य दर्शन 6

सोफिस्ट सम्प्रदाय- जिन्होंने विचार स्वातंत्र्य को लाने में कार्य किया वे सोफिस्ट कहलाए। वे अपने समय के राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों के दौर में आये।
      ग्रीक प्रजातंत्र में जो व्यक्ति राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में
उच्च पदों को प्राप्त करना चाहते थे, न्यायालय में वकील बनना चाहते थे
उन्हें तर्कपटु औरकुशल वक्ता होना आवश्यक था।उस समय आधुनिक विद्यालय नहीं थे अतः सोफिस्ट नगर नगर घूम कर सम्पन्न परिवारों के
युवाओं को शुल्क लेकर वक्तृत्व कला,साहित्य,दर्शन, राजनीति,तर्कशास्त्र आदि की शिक्षा देते थे । परन्तु बाद में  सोफिस्ट धन के लोभी हो गये, पर्याप्त धन मिलने पर वो कुछ भी कार्य करते थे, अतः वे हीन नजरों से देखे जाने लगे और सोफिस्ट शब्द व्यर्थ का तर्क करने वाले के संदर्भ में रह गया।


प्रोटेगोरस- प्रोटेगोरस का सिध्दांत है कि’मानव सब पदार्थों का मानदंड है(Homomensura). प्रोटेगोरस प्रथम सोफिस्ट थे, ये दर्शन,राजनीति, गणित, शिक्षाशास्त्र आदि विषयों के ज्ञाता थे। प्रोटेगोरस को उपयोगिता वाद का जन्मदाता कहा जा सकता है। उपयोगितावादी शिलर भी अपने को प्रोटेगोरस का शिष्य कहते हैं।
      प्लेटो ने अपनी एक कृति इनके नाम पर लिखी है।

  जार्जियसक् (Gorgias) – द्वितीय सोफिस्ट जार्जियस थे, इनके अनुसार
सत्य सापेक्ष है। निरपेक्ष सत्य असंभव है। उनका मत है, प्रथम तो कोई सत्य ही नहीं है, दूसरे यदि हो भी तो उसे हम नहीं जान सकते तीसरे यदि जान भी लें तो किसी को समझा नही सकते।

     प्रारंभ के सोफिस्ट दर्शन और ज्ञान में सच्चा प्रेम रखते थे परन्तु बाद के सोफिस्ट वृत्ति प्रेमी और धन के लोभी बन गये।









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