एम्पेडोक्लीज ( Empedocles)-495ई.पू.-435ई.पू.
एम्पेडोक्लीज दार्शनिक होने के साथ राजनीतिज्ञ भी थेऔर समाज में बहुत प्रतिष्ठित थे।एक बार इन्हें राजसिंहासन भी भेंट में दिया गया था
परन्तु इन्होंने अस्वीकार कर दिया।
एम्पेडोक्लीज के अनुसार पृथ्वी, जल,वायु और अग्नि सभी मौलिक तत्व हैं अपने मौलिक रुप में ये अविकारी हैं।इनकी न उत्पत्ति होती है न ही विनाश होता है, इनका केवल संयोग और वियोग होता है। प्रेम संयोग
का जनक है और विरोध का जनक वियोग है।
सृष्टि के आरंभ में सभी तत्व प्रेम के कारण इकाई की अवस्था में थे,कालान्तर में विरोध की अधिकता के कारण भेद उत्पन्न हुआ और परस्पर इनका वियोग हो गया तब से ही सृष्टि की प्रक्रिया आरंभ हुई।
सबसे पहले वायु पृथक हुआ, फिर अग्नि, फिर जल औरफिर पृथ्वी।
जब प्रेम पुनः प्राधान्य होगा तब ये महाभूत फिर दिव्यलोक में संयुक्त हो जायेंगे, यह प्रलय की अवस्था होगी।
इसी प्रकार सृष्टि और प्रलय का क्रम चलता रहेगा।
एनेक्जेगोरस(Enaxagoras) (500ई.पू.-428ई.पू.)
एनेक्जेगोरस के अनुसार मौलिक परम तत्व अनेक हैं, इन तत्वों को वे बीज कहते हैं येबीज अनन्त हैं तथा इनके गुण भी अनन्त हैं।इन बीजों में गति उत्पन्न हुई और इस गति के कारण समान बीज आपस में आर्कषित होकर मिल गये और सृष्टि का निर्माण हुआ।
प्रथम अवस्था को प्राकृत अवस्था कहते हैं, जिसमें सभी बीज मिश्रित हुये ये बीज भौतिक हैं अतः गति का कारण चेतन तत्व ही हो सकता है जो शक्ति मान है।इस चित् शक्ति युक्त तत्व को एनेक्जेगोरस
ने परम विज्ञान का नाम दिया। यह परम विज्ञान समस्त विश्व का
अधिष्ठाता है और बीजों में गति उत्पन्न करने का कारण है।
ल्यूसिपस व डिमाक्रिटस- (Leusipus-Democritus)-440ई.पू.-370ई.पू.
ये दोनों परमाणु वादी दार्शनिक हैं।ल्यूसिपस का जन्म माइलेटस नगर में 440ई.पू. हुआ था,डिमाक्रिटस इनके शिष्य थे।
ल्यूसिपस और डिमाक्रिटस के परमाणु मौलिक अविभाज्य, अतीन्द्रिय ,नित्य उत्पत्ति विनाश रहित जड़ तत्व हैं।गति उनका धर्म है।
उनमें केवल संख्या, परिमाण और आकार का भेद है, अन्य गुणों का भेद
उनमें नहीं है। वे आकाश में स्थित हैं और एक दूसरे से अलग हैं।
सृष्टि की उत्पत्ति का अर्थ है उनका परस्पर संयोग और विनाश का
अर्थ है उनका परस्पर वियोग।
ग्रीक परमाणुवादियों के अनुसार गति परमाणुओं का अपना धर्म है।