इरा और ज्यादा बेचैन हो गयी थी। क्या हुआ है ये तो धनंजय के आने पर ही पता चलेगा। इरा के लिए दिन बहुत लंबा हो गया था एक एक मिनट घंटों जैसा लग रहा था।
बार बार सोचती धनंजय को फोन करे फिर खुद को समझाती अब तो धनंजय आने ही वाला होगा।
अंधेरा होने के बाद भी अभी तक धनंजय आया नहीं था, हार कर उसने समय गुजारने के लिए कोई किताब पढ़नी शुरू की, एक दो पेज ही पढ़े थे कि धनंजय की किसी से बात करने की आवाज सुनाई दी इरा ने किताब बंद की और बाहर आ गई, धनंजय के साथ कोई महिला थी उसी के साथ बात करता वो अदंर आया, सामने ही इरा खड़ी थी, धनंजय ने बताया ये इरा है और इरा को बताया कि ये एस आई मैडम हैं।
इरा नमस्कार कर अदंर चली गई और चाय बनवा कर वापस आई , सबने चाय पी और बातें करते रहे ।
धनंजय ने इरा को बताया कल ग्यारह बजे मैडम बालिका सदन जायेगी तुम भी वहां समय से पहुंच जाना और वनवारी को साथ ले जाना।
एस आई के जाने के बाद धनंजय ने इरा को बताया, कोर्ट के बाद मैं सीधा कमिश्नर साहब के पास चला गया था सारी परिस्थिति से उन्हें अवगत कराने के बाद उन्होंने भी यही कहा कि ऐसे मामलों में ज्यादा देर नहीं करनी चाहिए। फिर सारा प्लान कमिश्नर साहब ने तैयार किया और मैडम को बुलाकर अच्छे से समझा दिया।
इरा को थोड़ी राहत मिली, “चलो कल मीरा मुक्त हो जायेगी” उसने सोचा।
“तुम मीरा को घर लेकर आ जाना,” धनंजय ने कहा, “कमिश्नर साहब ने कहा है कि मामले को ज्यादा बढ़ाने की जरुरत नहीं है, बच्ची घर आ जाये यही बहुत है क्योंकि ज्यादा बात बढ़ाने से गुप्ता जी का नाम और परिवार का नाम आयेगा जो सही नहीं होगा, विमलादेवी का और सुरेंद्र का तो कुछ नहीं पर वकील साहब का नाम बीच आये ये अच्छा नहीं होगा।”
इस बात से इरा भी सहमत थी।