धनंजय जब घर आया तो काफी रात हो चुकी थी, इरा सब कुछ जानने के लिए बेचैन थी उसने एक साथ धनंजय से सवाल करने शुरू कर दिये।
बिना कोई जवाब दिये धनंजय सोफे पर लेट गया वो बहुत थका लग रहा था। धनंजय की हालत देख कर इरा उसके लिए कॉफी बना लायी,
कुछ देर चुपचाप लेटे रहने के बाद धनंजय उठ कर
कॉफी पीने लगा।
धनंजय अब थोड़ा ठीक लग रहा था, धनंजय ने कहा, “कल एक लेडी एस आई और दो कांस्टेबल बालिका सदन जायेंगे और मीरा को ले आयेंगे, मैने कमिश्नर साहब को सब अच्छे से बता दिया है, वो गुप्ता जी के अच्छे दोस्तों में से थे।”
“मैं भी अगर जाऊँ तो?” इरा ने हिचकिचाते हुए कहा।
“हम्म, ठीक है मैं कमिश्नर साहब से बात कर लूंगा, वो लेडी इन्सपेक्टर को कह देंगे कि जब वो निकले तो तुम्हें फोन कर दें,” धनंजय ने कहा, “मैं बहुत थक गया हूँ सोने जा रहा हूँ।”
“और खाना?” इरा ने कहा
“तुम खा लो मेरा मन नहीं है,” कहकर धनंजय चला गया।
इरा भी बिना खाये सोने चली गयी।
इरा रात को मुश्किल से कुछ घंटे ही सो पाई, सुबह जल्दी ही उसकी नींद खुल गई। जल्दी-जल्दी उसने अपने काम निबटाये और तैयार हो गई।
धनंजय जब उठा तो इरा तैयार थी, उसके कुछ कहने से पहले ही इरा ने कहा, “मैंने सोचा मैं तैयार हो जाऊं, जाने कब इन्सपेक्टर का फोन आ जाये।”
धनंजय हंसा और बोला, “मैं कमिश्नर साहब को फोन तो कर दूं कि तुम भी जाना चाहती हो।”
“हां प्लीज़,” इरा बोली।
धनंजय ने फोन करके इरा को बताया कि जब इन्सपेक्टर निकलेंगी तो उसे फोन कर देगीं।
जैसे जैसे दिन बीत रहा था इरा की बेचैनी बढ़ती जा रही थी, उसे लग रहा था अब फोन आया तब फोन आया।
दिन के दो बज गये थे और अभी तक इन्सपेक्टर का फोन नहीं आया था।
इरा बाहर आ गयी तभी अंदर फोन बजने लगा, वो दौड़ती हुई अंदर गयी और रिसीवर उठा कर बोली, “हां मैं इरा बोल रही हूँ।”
“हां मैं जानता हूँ,” उधर से धनंजय ने हंसते हुये कहा।
“मैं क्या करूँ, मेरा किसी काम में मन ही नहीं लग रहा है, बार बार मीरा का ही ख्याल आ रहा है।”
“अच्छा सुनो आज का प्रोग्राम कैंसिल है,” धनंजय ने कहा, “अब शायद कल हो पायेगा।”
“क्या लेकिन…वो लड़की परेशानी में है,” इरा ने चिंता से कहा।
“हां ठीक है लेकिन हमें सावधानी से सब करना होगा, हड़बड़ी में काम बिगड़ सकता है,” धनंजय ने कहा, “तुम चिंता मत करो शाम को आकर बात करता हूँ।”