“ठीक है, मैं अभी सबको बुलाती हूँ” ऊषा देवी ने कहा, फिर सरिता को सब लड़कियों को बुलाने भेज दिया ।
थोडी़ देर में लड़कियां आ गयीं, ऊषादेवी एक एक करके उनके नाम बता कर उनकी उम्र बताती गयीं।
लगभग पन्द्रह लड़कियां आयीं उसके बाद ऊषादेवी ने इरा से पूछा, “कोई लड़की पसंद आई आपको?”
“बस यही लड़कियां है या और भी है?”
“इतनी ही है हमारे यहाँ, हमारा सदन छोटा है, कुल सात कमरे है जिसमें एक में ये ऑफिस है, चार कमरों में लड़कियां रहती है एक मेरे लिए और एक में दो महिला कर्मचारी रहती है।”
“मुझे रेखा पसंद है, एक दो दिन में मैं और मेरे पति आकर सारी जरूरी फार्म वगैरा और जो भी आप बतायेगी सब करके बच्ची को ले जायेंगे।”
ऊषादेवी ने सिर हिलाया।
इरा उठ कर खड़ी हो गयी, लड़कियां वापस चली गयीं थीं इरा भी बाहर आ गयी।
पीछे से सरिता भागती हुई आयी, “मैडम जी ये आपका बैग, अदंर ही भूल आयीं आप”
“थैंक्स”, इरा ने बैग लेकर कहा ।
“मेंशन नॉट” सरिता मुस्कुरा कर बोली ।
“अरे वाह, तुम तो अच्छी खासी अंग्रेज़ी बोल लेती हो,” इरा ने हंसकर कहा।
“मीरा ने थोडी़ थोड़ी सिखाती थी मुझे,” सरिता शरमा कर बोली।
“मीरा वो कौन है, इन लड़कियों मे तो कोई मीरा नाम की लड़की नहीं थी।”
“वो तो…” सरिता थोड़ा घबरा गयी।
“हां?कौन है मीरा…?” इरा ने प्यार से पूछा
“पता नहीं मैडम जी मैं ज्यादा नहीं जानती उसके बारे में ,पर बहुत अच्छी लड़की है मुझे उस पर बड़ी दया आती है।”
“क्यों ऐसा क्या है?” इरा ने पूछा
“किसी अच्छे घर की लगती है, उसकी कोई रिश्तेदार यहां छोड़ गयी थी, मैडम को भी जाने क्या समझा गयी थी, वो उसे हमेशा स्टोर रूम में बंद करके रखती हैं,” सरिता ने दुख से कहा।
तभी ऊषादेवी ने सरिता को आवाज लगायी,”क्या कर रही है वहां?”
सरिता ने इरा से धीरे से कहा, “मैडम को कुछ मत बताइएगा वरना वो बहुत नाराज होंगी।”
इरा ने सरिता के कंधे पर हाथ रख कर कहा, “चिंता मत करो मैं कुछ नहीं कहूंगी।”