लतिका सोच रही थी जल्दी ही उसे कुछ करना पड़ेगा क्योंकि घर पहुंच कर वो कुछ नहीं कर सकेगी क्योंकि मां और सुरेंद्र नहीं चाहेंगे कि मीरा के लिये कुछ किया जाये। लतिका ने धनंजय को फोन करने का निर्णय लिया, वैसे भी आज रविवार था और संभावना थी कि वो घर पर मिल जायें ।
लतिका ने टेलीफोन डायरेक्टरी से धनंजय का नंबर ढूंढ कर फोन किया, घंटी जा रही थी, लतिका सोच रही थी कि वह उन्हें क्या बतायेगी
तभी उधर से किसी ने फोन उठा लिया।
“हैलो …।”
“क्या मैं इरा मैडम से बात कर सकती हूँ?”
“हां, एक मिनट..मैं बुलाता हूं”
कुछ ही सेकेंड में उधर से इरा की आवाज आई “हां कहिये मैं इरा त्रिवेदी बोल रही हूँ।”
“हैलो…इरा मैडम मैं लतिका गुप्ता” लतिका ने जल्दी से कहा, “श्री बलराम गुप्ता जी की बेटी, आपको याद है पिताजी ने मुझे और मीरा दी को आपसे मिलवाया था, उन्होंने हमसे कहा था, आप हमारी मदद जरूर करेंगी।”
“हां बिलकुल, क्या बात है?” इरा ने गर्मजोशी से कहा “गुप्ता जी तो मेरे और धनंजय के गुरु थे, उनसे ही हमने सब सीखा है खैर बताओ तुम और मीरा कैसे हो?”
“मैडम, मुझे आपकी मदद की सख्त जरूरत है,” लतिका की आवाज रुआंसी हो रही थी।
“घबराओ मत, मुझसे जो हो सकेगा मैं करुँगी, आराम से बताओ पहले हुआ क्या है”
“पिताजी के जाने के बाद मां ने मीरा दीदी को हॉस्टल नही आने दिया मैं अकेली ही आई थी। मुझे सुरेंद्र भाई छोड़ गये थे, लेकिन जब मैं छुट्टियों में घर गयी तो घर पर मीरा दीदी नहीं थीं, मैंने मां से पूछा तो उन्होंने कुछ नहीं बताया” लतिका ने पिछले दिनों जो कुछ भी हुआ था सब इरा को बता दिया और मीरा के फोन के बारे में भी बता दिया।
इरा ने धैर्यपूर्वक लतिका की सारी बातें सुनी और उससे कहा, “तुम चिंता मत करो, मैं मीरा का पता जल्दी लगा लूंगी तुम जब आओगी तो मीरा से मिलोगी…जरा भी चिंता मत करो,” कहकर इरा ने फोन रख दिया।