अगले दिन सुरेंद्र लतिका को हॉस्टल छोड़ने चला गया। बहुत दिनों बाद मीरा को एक बार फिर से भय की अनुभूति होने लगी, उसके पास उसका ध्यान रखने वाले न तो उसके मामा थे और न ही प्यारी बहन लतिका।
मीरा लतिका को फोन करना चाहती थी पर कोई मौका नहीं मिल रहा था।
लतिका का दिल इस बार हॉस्टल में नहीं लग रहा था, ये पहली बार था जब लतिका अकेली थी। दो तीन दिन बाद जब लतिका ने घर फोन किया तो उसे लगा कि मीरा उसे कुछ बताना चाहती है पर बात नहीं कर पा रही थी शायद मां या सुरेंद्र आसपास होगें। लतिका ने सोचा एक दो दिन बाद बात पूछूँगी मीरा दी से।
हफ्ते भर बाद जब लतिका ने घर फोन किया तो सुरेंद्र ने उठाया मीरा से बात करने की बात पर बोला, वो घर पर नहीं है और फोन बंद कर दिया।
उसके बाद से जब भी लतिका घर फोन करती उसे यही बताया जाता मीरा घर पर नहीं है कहीं गयी हुई है लतिका ने कई बार जानने की कोशिश की कि मीरा कहाँ है पर उसे कुछ भी पता नहीं चल पा रहा था।
धीरे धीरे दो महीने बीत गये मीरा कहाँ थी लतिका को कुछ पता नहीं था, मां और सुरेंद्र से पता लगाना मुश्किल था घर के नौकर भी कुछ बता नहीं पा रहे थे।
लतिका का मन किसी काम में नहीं लग रहा था, न तो वो पढ़ पा रही थी न मीरा का ख्याल अपने दिमाग से हटा पा रही थी, इतनी व्याकुलता उसके अंदर क्यों है आखिर मीरा दी है कहाँ? कहीं उनके साथ कुछ हुआ तो नहीं है मैं किस तरह पता करूँ।