मीरा-5

मीरा सत्रह साल की हो गई थी अब वो खुश रहने लगी थी स्कूल से अब कॉलेज जाने का समय आ गया था। मीरा अपने मामा की तरह एक लॉयर बनना चाहती थी…एक अच्छा लॉयर। लतिका भी ऐसा ही सोचती थी, दोनों सगी बहनों से भी ज्यादा घुलमिल गई थीं, हमेशा साथ ही रहतीं।
      दोनों बहनों की छुट्टियाँ थीं, गुप्ता जी के पास भी व्यस्तता कम थी तो परिवार के साथ शिमला जाने का कार्यक्रम बना लिया गया। मीरा और लतिका बेहद खुश थीं दोनों न जाने क्या क्या सोच रही थीं वहां जाकर क्या करेंगी, रात काफी हो गयी थी, अगली सुबह निकलना भी था, फिर भी दोनों की आँखों से नींद गायब थी।
  
फोन की लगातार घंटी ने गुप्ता जी को जगा दिया, रात के दो बज रहे थे, मेहरा जी फोन पर थे।

“हैलो” गुप्ता जी ने कहा ।
उधर से मेहरा जी ने गुप्ता जी को पता नहीं क्या कहा, कि गुप्ता जी का चेहरा क्रोध और क्षोभ से भर उठा।
विमलादेवी भी जग गयी थीं, उन्होंने प्रश्नवाचक निगाहों से गुप्ता जी को देखा

“तुम्हारा लाड़ला कहाँ है”

“सो रहा होगा”

“तुमने उसे बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी”
“ऐसा क्या हो गया”

गुप्ता जी बिना कोई जवाब दिये चले गये।

गुप्ता जी के जाने के बाद विमलादेवी सुरेंद्र के कमरे में गयीं कमरा खाली था, चिन्तित विमलादेवी के दिमाग में सैकड़ों ऊलजलूल ख्याल आते रहे।
करीब साढ़े तीन बजे गुप्ता जी सुरेंद्र के साथ आये, सुरेंद्र की आँखें लाल हो रहीं थीं पैर लड़खड़ा रहे थे, उसे कुछ होश नहीं था। सुरेंद्र को उसके कमरे में पहुंचाने के बाद विमलादेवी जब कमरे में वापस आयीं तो गुप्ता जी ने कहा, अभी भी इसे सम्हाल लो वरना इसका क्या होगा, तुम खुद ही सोचो।
       अगले दिन सब शिमला के लिए रवाना हो गये, सुरेंद्र अलग थलग सा रहा और गुप्ता जी से नज़रें चुराता रहा, विमलादेवी भी चुप चुप थीं और सुरेंद्र से नाराज़ भी थीं ।
     होटल पहुंचते पहुंचते सब थक गये थे, थोड़ी देर आराम करने के बाद
घूमने का प्रोग्राम तय हुआ।
  शिमला के सुहावने मौसम ने सबके तनाव को दूर कर दिया था, सुबह से शाम तक घूमते घूमते जब सब थक जाते तो कहीं खाना खाते, थोड़ा आराम करते और फिर नया प्रोग्राम शुरू हो जाता ।

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