एक शाम को गुप्ता जी और विमलादेवी चाय पी रहे थे, विमलादेवी ने अपने पति की ओर देखते हुये बोली, “तुम नाराज न हो तो एक बात कहूं..”
“हां.. कहो” ,गुप्ता जी कुछ सोचते हुये कहा ।
“मीरा की और लतिका की तो शादी हो जायेगी और वे दोनों अपने घर में व्यस्त हो जायेंगी”
“हम्म…”, गुप्ता जी ने विमलादेवी की ओर देखते हुये हुंकारा भरा।
“शादी के बाद कहाँ समय होगा दोनों के पास, दोनों ही अपनी जिंदगी में व्यस्त हो जायेगीं।”
“वो तो है …।”
“तुम इतने बड़े वकील हो, कैसे कैसे केस साल्व करते हो, सब तरह के जोड़तोड़ कर लेते हो बड़े बड़े मामले सम्हाल लेते हो।”
“कहना क्या चाहती हो?” गुप्ता जी ने उन्हें टोकते हुये कहा।
“क्या ऐसा नहीं हो सकता कि मीरा की कम्पनी अपने सुरेंद्र के नाम हो जाये?” विमलादेवी ने अपने मन की बात बताई।
“क्या? कह रही हो?” वकील साहब अविश्वास से बोले।
“ठीक ही तो कह रही हूं, वैसे भी मीरा का हमारे सिवा है ही कौन?” विमलादेवी ने बात पूरी की ।
वकील साहब कुछ देर विमलादेवी को देखते रहे, फिर गहरी सांस भर कर बोले, “अच्छा किया जो तुमने ये बातें मुझे बता दी, देखता हूँ मैं क्या कर सकता हूँ..”
विमलादेवी खुश होकर बोली “मुझे पता था, तुम मेरी बात जरूर समझोगे”
“ठीक है, मैं चलता हूँ, देखता हूँ ये मामला जल्दी ही निबटा लूं, क्यों ?”
“हां हां मुझे पता था तुम मेरी बात जरूर मानोगे,” उत्साहित होकर विमलादेवी बोली ।
उस दिन कोर्ट में गुप्ता जी का केस था, जिसमें एक पिता ने अपने बेटे के विरूद्ध याचिका दायर की थी। गुप्ता जी पिता की तरफ से पैरवी कर रहे थे, फैसला पिता के पक्ष में हुआ था पिता को बेदखल कर बेटे ने मकान पर कब्जा कर लिया था वकील साहब ने पिता को पुनः कब्जा दिला दिया था।
आफिस में आकर गुप्ता जी ने अपने सहायक धनंजय को बुलाया साथ में धनंजय की पत्नी इरा भी थी। काफी देर तक तीनों बातें करते रहे,गुप्ताजी ने धनंजय को कुछ कागजात दिये और निर्देश दिया कि जो काम उन्होंने उसे दिया है वो जल्द से जल्द हो जाना चाहिए।
तीन दिन बाद धनंजय ने वकील साहब को एक फाइल लाकर दी और कहा सबकुछ फाइल में है आपने जैसे कहा था वो सारा काम उसी तरह कर दिया है।
गुप्ता जी ने फाइल चेक की और सन्तुष्ट होकर बोले, “तुमने बहुत अच्छे से सब कुछ किया है अब इस फाइल को लॉकर में रख दो अगर मुझे कुछ हो जाये तो जैसा मैंने कहा है वैसा ही करना है तुम्हें।”
“जी सर ,ऐसा ही होगा” धनंजय ने जवाब दिया।