मीरा – 3

दो हफ्ते बाद जब गुप्ता जी घर वापस आये तो विमलादेवी उनके पीछे पीछे कमरे में आ गयी।
“लड़कियां कौन से हॉस्टल गयी हैं… कब तक वहां रहेंगी?” विमलादेवी ने गुप्ता जी से सवाल किया।
“जब तक उनकी पढ़ाई पूरी नहीं हो जाती”
“कहना तो नहीं चाहती मैं, पर मीरा पर इतना खर्च करने की क्या आवश्यकता है,” तीखे स्वर में विमलादेवी बोली।

“तुम खर्चा उठाओगी मीरा का” कड़वे अन्दाज़ में गुप्ता जी बोले “तुम्हारा बेपनाह प्यार उस नन्हीं बच्ची के लिए मैंने देख लिया है, तुम्हें तो उस बिन मां बाप की बच्ची पर तरस भी नहीं आया, अपने बेटे के साथ ऐसा कर सकती हो तुम?”

“मैं….” विमलादेवी ने कुछ कहने की कोशिश की

  गुप्ता जी ने उनकी बात पर ध्यान न देते हुये कहा,”जानती हो मीरा के
पास कितनी प्रापर्टी है, उसके पिता उसके लिये करोड़ों रूपये छोड़ गये हैं। उनकी कम्पनी का सालाना टर्न ओवर दो सौ करोड़ है, तुम खर्च उठाओगी मीरा का!? वो जिस घर में रहती थी वो इस घर से सौगुना ज्यादा शानदार है, समझ गई, अब जाओ। मैं थोड़ा आराम करना चाहता हूँ।”
        सारी बातें सुनकर विमलादेवी अवाक् रह गयीं, उनके तो ख्याल में भी नहीं था कि मीरा इतनी अमीर होगी, वह कुछ सोचती हुई बाहर आ गयीं।
     बलराम गुप्ता शहर की जानीमानी हस्ती थे, पेशे से वकील थे,जो भी केस उनके पास आता था उनकी जीत पक्की होती थी, दूर दूर तक उनका बड़ा सम्मान था, उनकी प्रसिद्धि दूर तक थी।

       देखते देखते चार साल बीत गये लड़कियां छुट्टियों में घर आतीं और छुट्टियाँ गुजार कर वापस चली जाती। घर पर सुरेंद्र अकेला था और मां के लाड़ प्यार में जिद्दी और लापरवाह हो गया था, गुप्ता जी कभी कभी उसे समझाते तो कभी नाराज़ भी हो जाते पर सुरेंद्र चुपचाप सब सुनता था और बेअसर रहता।

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3 thoughts on “मीरा – 3

  1. I follow your story with passion because for me, India is a totally different culture than mine, South America. Your stories are very interesting and I enjoy reading them. Greetings from Chile.
    Manuel Angel

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