एक नौ साल की लड़की सिर झुकाये खड़ी थी, उसके हाथों और चेहरे पर खरोंचों के निशान थे, जिनसे खून छलक आया था कपड़ों पर मिट्टी लगी हुई थी और बाल बिखरे हुये थे।
पास ही एक ग्यारह साल का लड़का खड़ा था, उसके मुख पर दुष्टता पूर्ण हंसी थी।
वह सामने बैठी अपनी मां से शिकायती लहजे में बोला, “मां ये लड़की गाली भी देती है।”
लड़के की मां ने लड़की को घूर कर देखा और बोली, “तुम और कितनी बुरी आदतों की शिकार हो?”
“मैं गाली नहीं देती,” लड़की धीमी आवाज में बोली।
तभी पीछे से एक छह-सात साल की बच्ची दौड़ती हुई आयी और बोली, “मां भैय्या झूठ बोल रहा है, भैय्या ने मीरा दीदी को धक्का दिया था, जब दीदी गुलाब का फूल तोड़ रही थी, देखो न दीदी के हाथ और चेहरे पर खून भी निकल आया है”
मां ने कठोरतापूर्वक बच्ची को देखा और कहा “तुम्हें बीच में बोलने की जरूरत नहीं है, तुम अंदर जाओ”
“पर मां…”, बच्ची कुछ कहना चाहती थी किन्तु मां की भंगिमा देखकर चुपचाप चली गयी।
लड़के की मां विमला देवी, जो मीरा की मामी थीं। कुछ महीने पहले
मीरा के माता पिता की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गयी थी। मीरा को उसके
मामा बलराम गुप्ता अपने साथ ले आये थे, कि बच्चों के साथ मीरा शीघ्र
ही सहज हो जायेगी और अपने माता पिता का दुःख भूल जायेगी। परन्तु
मीरा की मामी और ममेरा भाई सुरेंद्र हर पल उसे मां बाप की याद दिलाते रहते थे। मीरा को बहुत रोना आता था बहुत ज्यादा पर उसका स्वाभिमान उसकी आंखों से आंसू बाहर नहीं आने देता था।
आज भी जब वो चुपचाप बगीचे में खड़ी गुलाब को निहार रही थी तभी सुरेंद्र ने उसे पीछे से आकर धक्का दे दिया था और वो गिर गयी थी
उसका सारा चेहरा कांटों ने खरोंच दिया था फिर भी वो अपराधी बनी
अपनी मामी के सामने खड़ी थी, चेहरे और हाथों पर जलन हो रही थी
आंसुओं से धुंधली आंखों में मां का चेहरा घूम रहा था।
तभी मामी की आवाज उसके कानों में पड़ी, “गिरधारी इस लड़की को ले जाकर स्टोररूम में बंद कर दो, इसे कुछ भी खाने पीने को मत देना तभी इसका दिमाग ठीक होगा”