अरस्तू(Aristotle)-384ई. पू.-322 ई.पू.- अरस्तू का जन्म Thres के
स्टेगिरा नगर में हुआ था।उनके पिता मेसीडोन नरेश के राजवैद्य थे।सत्रह वर्ष की आयु में अरस्तू विद्याध्ययन के लिये प्लेटो के एकेडमी में गए और बीस वर्ष की आयु तक प्लेटो के साक्षात सम्पर्क में रहे।
अरस्तू मेसीडोन नरेश फिलिप के राजकुमार एलेक्जेंडर (सिकंदर, जो बाद में सिकंदर महान कहलाये) के तीन वर्ष तक अध्यापक रहे। एथेंस में वापस आकर अरस्तू ने लाइसियम (Lyceum) नामक शिक्षा संस्था की
स्थापना की।एलेक्जेंडर की मृत्यु के पश्चात उन पर अधार्मिकता का अभियोग लगाया गया,वे एथेंस छोड़ कर चालसिस नामक स्थान पर चले गये।वहीं एक वर्ष बाद उनका देहांत हो गया।
जनश्रुति के अनुसार अरस्तू हकलाते थे,परन्तु उन्हें अपने ग्रीक होने पर अभिमान था।वे बुद्धि और इन्द्रियानुभव दोनों का सामंजस्य करके
मध्यम मार्ग के समर्थक थे।
अरस्तू ने दर्शन, तर्कशास्त्र, मनोविज्ञान, भौतिकविज्ञान, प्राणीविज्ञान,
आचारशास्त्र, राजनीति और साहित्य पर महत्त्वपूर्ण विचार प्रकट किए हैं।पाश्चात्य निगमन के तो वे जनक हैं और उसको उन्होंने जो रुप दिया वह शताब्दियों तक मान्य रहा,और आज भी महत्वपूर्ण है।
उनके महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं- भौतिक विज्ञान, तत्वविज्ञान,आचार शास्त्र
और तर्कशास्त्र।