प्लेटो ने अपने गुरु सुकरात के सब विचारों का समन्वय अपने मौलिक विचारों के साथ किया।अपने पूर्व वर्ती सारे ग्रीक दार्शनिकों का प्रभाव प्लेटो पर और प्लेटो का प्रभाव अपने परवर्ती सारे पाश्चात्य दार्शनिकों पर पड़ा।प्लेटो प्रधान रूप से रहस्यवादी हैं।
दर्शन का लक्ष्य असत् से सत् की ओर,अंधकार से प्रकाश की ओर,मृत्यु से अमरत्व की ओर जाना है।यह साधना द्वारा हो सकता है,तर्क तत्व की ओर संकेत मात्र करता है,तत्व का साक्षात्कार साधना का विषय है।प्लेटो का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत उनका विज्ञानवाद है।
प्लेटो के विज्ञानों के पांच दृष्टिकोण-
1 ज्ञान की दृष्टि
2-स्वरूप की दृष्टि
3-उद्देश्य की दृष्टि
4-सत्ता की दृष्टि
5-रहस्य की दृष्टि
ज्ञान की दृष्टि-(Epistemologically)-ज्ञान की दृष्टि से विज्ञान,ज्ञान के वास्तविक विषय हैं।प्लेटो के अनुसार ज्ञान और ज्ञान का विषय दोनों नित्य और अपरिणामी होने चाहिए, अनित्य और क्षणिक का वास्तविक ज्ञान नहीं हो सकता।फीडो में कहा है कि इन्द्रियों से सत्य की प्राप्ति नहीं हो सकती, सत्य की प्राप्ति ज्ञान से ही हो सकती है।फीडो में कहा है इन्द्रियानुभव के बिना हमें विज्ञान का संस्मरण नहीं हो सकता।प्लेटो इन्द्रिय जगत को असत् नहीं कहते,वे इसे प्रतीति का विषय मानते हैं उनके अनुसार विज्ञान के बिना हमें जगत का इन्द्रियानुभव भी नहीं हो सकता क्योंकि ज्ञान का विषय विज्ञान ही है।
स्वरूप की दृष्टि(Universal class concepts)- सामान्य उत्पत्ति
विनाशरहित अपरिणामी और नित्य है, ये हमारी बुद्धि की कल्पना नहीं है इनकी वास्तविक सत्ता है।प्लेटो ने इन्द्रिय जगत को विज्ञान जगत में
भाग लेने वाला अंश और उनका प्रतिबिंब कहा है, अंश और प्रतिबिंब से
प्लेटो का तात्पर्य अभिव्यक्ति का है।विज्ञानों को प्लेटो ने दिक्कालातीत
माना है।प्लेटो ने विज्ञानों को इन्द्रिय जगत के विशेषों में अनुस्यूत बताया है।
उद्देश्य की दृष्टि- विज्ञान के नित्य सांचे हैं जिनके द्वारा ईश्वर इन्द्रिय जगत के पदार्थों का निर्माण करते हैं।विश्व की सृष्टि इसलिए हुई है कि इसके अपूर्ण और अनित्य पदार्थ पूर्ण आदर्शों को प्राप्त करने के लिए
उत्तरोत्तर विकसित हों।विज्ञान विश्व के पदार्थों में अनुस्यूत है।प्लेटो ने
ईश्वर और शिवतत्व में भेद माना है, ईश्वर सगुण है शिवतत्व निर्गुण, ईश्वर अपर है शिवतत्व पर।ईश्वर सृष्टि के निमित्त कारण और नियन्ता हैं, शिवत्व ईश्वर का भी पिता है।विशुद्ध विज्ञानस्वरूप शिवत्व का निर्विकल्प साक्षात्कार ही मानव जीवन की चरम सार्थकता है।
सत्ता की दृष्टि- जो पदार्थ विज्ञान की ओर जितना अभिमुख है, उसकी
उतनी ही अधिक सत्ता है ।विज्ञान नित्य, अधिकारी, अविनाशी, शाश्वत, सामान्य और सत् है।प्लेटो विज्ञान को इन्द्रिय जगत केअणु अणु में अन्तर्यामी मानते थे।प्लेटो ने असत्, भ्रांति और स्वप्न को भी कुछ न कुछ
सत्ता दी है।सोफिस्ट में कहा गया है-पूर्ण असत् की कल्पना असंभव है।
रहस्य की दृष्टि-विज्ञान शिवतत्व की अभिव्यक्ति के स्तर हैं।प्लेटो ने ईश्वर
को सृष्टि का निमित्त कारण और नियन्ता माना है, यह शिवतत्व निर्गुण
और अनिवर्चनीय है केवल निर्विकल्प स्वानुभूति द्वारा ही साक्षात्कार किया जा सकता है।उनके अनुसार ज्ञान ही धर्म है और अज्ञान अधर्म।
प्लेटो के अनुसार स्वतंत्रता का अर्थ उच्छृंखलता या परतंत्रता नहीं है, उसका अर्थ ज्ञानतन्त्रता है।
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